The Alchemy of Transformation: Personal Growth in the Bhagavad Gita

The Alchemy of Transformation: Personal Growth in the Bhagavad Gita

The Bhagavad Gita, often referred to as the “Song of the Divine,” is a timeless spiritual text revered for its profound teachings on life, duty, and personal growth. Within its verses lies a treasure trove of wisdom that transcends time and culture, offering invaluable insights into the nature of existence and the path to inner transformation.

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Top 10 Modern Applications of the Bhagavad Gita’s Teachings

Top 10 Modern Applications of the Bhagavad Gita’s Teachings – In today’s challenging world, unsettling events can serve as reminders of the darkness and dangers around us. Nevertheless, the Bhagavad Gita urges us to embrace our responsibilities earnestly, draw strength from spirituality, and approach life with a spirit of service. By embodying these principles, we actively contribute to creating a more compassionate and radiant corner of the world. By embracing a service attitude and recognizing our connection with the divine, we can play our part in bringing light to our corner of the world brighter instead of darker.

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भगवद्गीता से नेतृत्व के 10 प्रमुख सूत्र

भगवद्गीता से नेतृत्व के 10 प्रमुख सूत्र – भगवद्गीता नेतृत्व का एक अदृष्ट उदारहण है क्योंकि भगवद्गीता जो कि स्वयं कृष्ण द्वारा बोली गयी कृष्ण ने अपना बचपन एक ग्वाल बाल के रूप मे बिताया फिर मथुरा जाकर कंस जैसे असुर का वध किया तथा अपने माता पिता और राजा उग्रसेन को कंस के कारागार से मुक्त कराया | तत पश्चात राजा का पद स्वयं ग्रहण न करके उस पर राजा उग्रसेन को बनाया | इससे उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया पद से अधिक महत्पूर्ण योगदान होता है | नेता कभी भी पद को महत्त्व नहीं देते वह सदैव योगदान को महत्त्व देते है | इसके बाद जब भी जिम्मेदारी उठाने की बारी आती मथुरा मे या द्वारका मे कोई भी परेशानी आती तो श्रीकृष्ण सबसे आगे होते थे जिम्मेदारी उठाने मे | इस प्रकार उन्होंने नेतृत्व का एक अद्भुत उदारहण प्रस्तुत किया |

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Embarking on a Journey Through Bhagavad Gita’s Stories: Unveiling Spiritual Wisdom

Embarking on a Journey Through Bhagavad Gita’s Stories: Unveiling Spiritual Wisdom – Step into the profound world of the Bhagavad Gita, where timeless stories and parables paint a vibrant picture of self-discovery and divine connection. This sacred text, nestled within the epic Mahabharata, weaves a dialogue between Prince Arjuna and Lord Krishna on the battlefield of Kurukshetra. Beyond its historical roots, the Bhagavad Gita’s verses offer universal wisdom, accompanied by captivating parables that bring its teachings to life.

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भगवद्गीता के शांति प्रदान करने वाले १० प्रमुख श्लोक

भगवद्गीता के शांति प्रदान करने वाले १० प्रमुख श्लोक – भगवद्गीता  समस्त वेदों का सार है तथा यह वेदों का प्रमुख उपनिषद है | यह स्वयं भगवान के मुख से अवतरित हुई है | जिस प्रकार गंगा भगवान के चरणकमलो से निकलती है तथा इसमें स्नान करने वाले व्यक्ति के समस्त पापों का उद्धार कर देती है, उसी प्रकार गीता भगवान के मुख से अवतरित हुई है तथा वह व्यक्ति को भवबंधन से मुक्ति दिला सकती है | भगवद्गीता श्रीकृष्ण ने उस समय कही जब अर्जुन बहुत अधिक दुविधा मे थे तथा असमंजस मे थे | अर्जुन कृष्ण के शरणागत होते है तथा उनसे प्रश्न करते है इस अवस्था मे उन्हें क्या करना चाहिए ? भगवद गीता मे ७०० श्लोक है यहाँ हम भगवद्गीता के शांति प्रदान करने वाले १० प्रमुख श्लोक पर चर्चा करगे जो मनुष्य को विपरीत परिस्थिति मे शांति प्रदान करते है |

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Top 10 Quotes From Lord Krishna in Bhagavad Gita

Top 10 Quotes From Lord Krishna in Bhagavad Gita – The Bhagavad Gita is the greatest of India’s ancient spiritual classics. It is the essence of Vedic knowledge and one of the most important Upanisads in Vedic literature. If we want to take any particular medicine, then we need to follow the directions written on the label. We cannot take the medicine according to our whim or the direction of a friend. It must be taken according to the direction on the label or as directed by the physician. 

Similarly, the Bhagavad Gita should be taken or accepted as it is directed by the speaker himself.  The speaker of the Bhagavad Gita is Lord Sri Krishna. He is mentioned on every page of the Bhagavad Gita as the Supreme Personality of Godhead, Bhagavan. Therefore we should take Bhagavad-gita As It Is directed by the Personality of Godhead Himself.

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भगवद गीता के अनुसार हमारा धर्म और कर्तव्य

भगवद गीता के अनुसार हमारा धर्म और कर्तव्य – Hare Krishna भगवद गीता के अनुसार हमारा धर्म और कर्तव्य भगवद्गीता को गीतोपनिषद भी कहा जाता है। यह वैदिक ज्ञान का सार है और वैदिक साहित्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपनिषद,है ।

भगवत गीता के वक्ता भगवान श्रीकृष्ण है।भगवद्गीता के प्रत्येक पृष्ठ पर उनका उल्लेख भगवान् के रूप में हुआ हैं। भगवान ने भी स्वयं भगवदगीता में अपने को परम पुरुषोत्तम भगवान कहा और ब्रह्म-संहिता तथा अन्य पुराणो में विशेषत्या श्रीमद भागवतम जो भागवत पुराण के नाम से विख्यात  है, वे इसी रूप में स्वीकार किये गये है (कृष्णुस्तु भगवान स्वयम्)| अतएव भगवद्गीता हमे भगवान ने जैसे  बताई है, वैसे ही स्वीकार करनी चाहिए।

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अध्याय ११ – विराट रूप ( सार )

अध्याय ११ – विराट रूप ( सार ) – अध्याय दस मे श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य का वर्णन है तथा अध्याय दस के अंत मे भगवान अर्जुन से कहते है कि मैं अपने एक अंशमात्र से सम्पूर्ण ब्रहमांड मे व्याप्त होकर इसे धारण करता हूँ | यह सुनकर अर्जुन भगवान से प्रार्थना करते है कि वह उन्हें अपना विराट रूप दिखाए | अर्जुन इस बात को स्वीकार करते है कि श्रीकृष्ण एक साधारण मनुष्य नहीं है, अपितु समस्त कारणों के कारण है | किन्तु वह यह जानते है कि दूसरे लोग नहीं मानेंगे। अत: इस अध्याय में वह सबों के लिए कृष्ण की अलौकिकता स्थापित करने के लिए कृष्ण से प्रार्थना करता है कि वे अपना विराट रूप दिखलाएँ।

अध्याय ११ – विराट रूप ( सार )

वस्तुत: जब कोई अर्जुन की ही तरह कृष्ण के विराट रूप का दर्शन करता है, तो वह डर जाता है, किन्तु कृष्ण इतने दयालु हैं कि इस स्वरूप को दिखाने के तुरन्त बाद वे अपना मूलरूप धारण कर लेते हैं। भगवान् कृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं और विश्व-रूप में अपना अद्भुत असीम रूप प्रकट करते हैं। इस प्रकार वे अपनी दिव्यता स्थापित करते हैं। कृष्ण बतलाते हैं कि उनका सर्व आकर्षक मानव-रूप ही ईश्वर का आदि रूप है। मनुष्य शुद्ध भक्ति के द्वारा ही इस रूप का दर्शन कर सकता है।

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 Importance Of Guru

 Importance Of Guru

जो अंधकार का निरोध करता है, उसे गुरु कहा जाता है ।

सच्चा गुरु भगवान का प्रतिनिधि होता है, और वह केवल भगवान के बारे में ही कहता है और कुछ नहीं। सच्चा गुरु वही है , जिसकी रुचि भौतिकवादी जीवन में नहीं होती। वह केवल और केवल भगवान की ही खोज में रहता है , यदि गुरु भगवान का प्रतिनिधित्व कर रहा है तो वह गुरु है।

केवल एक गुरु (सिद्ध पुरुष), जो ईश्वर को जानता है, दूसरों को सही ढंग से ईश्वर के बारे में शिक्षा दे सकता है। व्यक्ति को अपनी दिव्यता को पुनः पाने के लिए एक ऐसा ही सद्गुरु चाहिए। जो निष्ठापूर्वक सद्गुरु का अनुसरण करता है वह उसके समान हो जाता है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को अपने ही स्तर तक उठने में सहायता करता है।

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत कराते हैं। स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि हम आध्यात्मिक ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकते हैं? इसका उत्तर श्रीकृष्ण इस श्लोक में देते हैं।

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