हमें भगवत गीता कब पढ़नी चाहिए

जैसा की हम जानते है कक हमारे देश मे हर शुभ कार्य को करने का मुहूतय होता है जैसे हववाह मुहूतय, गृहप्रवेश मुहूतय, लगन मुहूतय और कोई भी शुभ काम जैसे नर्ा व्यवसार् आरंभ करना हो अथवा बालक का प्रथम अन्नप्राशन र्ा मुंडन करना और हवद्यारम्भ सब मुहूतय देख कर ककर्े जाते है | परन्तु क्र्ा अपने कभी सोचा है शास्त्र अध्र्र्न र्ा भगवद्गीता जो कक साक्षात् श्रीकृष्ण के मुख से अवतररत हुई है और इसे पढ़ना सबसे शुभ कार्य है, उसे भी पढने का कोई मुहूतय है | भगवद्गीता सम्पूणय मनुष्र्ों के लाभ के हलए एक महत्वपूणय पुस्तक है र्ह स्वर् भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अजुयन को कुरुक्षेत्र के र्ुद्ध मे जब अजुयन कतयव्य हवमूढ़ हो गए थे, अजुयन जो कक भगवान के हमत्र तथा भक्त है उन्हें ज्ञान प्रदान करने के हलए कही गर्ी तथा इसका संकलन व्यासदेव जी ने ककर्ा है |

हमें भगवत गीता कब पढ़नी चाहिए

हजस प्रकार एक कार को चलाने से पहले र्ातार्ात के हनर्मो का ज्ञान होना आवश्र्क है ककस गहत मे गाडी चलानी है कहााँ हॉनय नहीं बजाना है तथा हसगनल पर ककस प्रकार चलाना है ,उसी प्रकार मनुष्र् जीवन का भी एक मुखपत्र होता है हवपरीत पररहस्थर्ों मे ककस प्रकार का व्यवहार करना है तथा अनुकूल पररहस्थर्ों मे ककस प्रकार का | मानव जीवन का उद्देश्र् क्र्ा है ? मानव जीवन का धमय क्र्ा है ? क्र्ों मनुष्र् जन्म इतना महत्वपूणय है ? मनुष्र् जीवन पशुओ से ककस प्रकार बेहतर है ? तथा मनुष्र् जीवन कक सफलता ककस मे है इत्र्ाकद प्रश्नों के उत्तर हमें भगवद्गीता मे हमलते है |

भगवद्गीता पढ़ने का कोई हनहित समय है ?

हमें भगवत गीता कब पढ़नी चाहिए? भगवद्गीता इतना पहवत्र ग्रन्थ है की र्ह ककसी भी समर् पढ़ी जा सकती है | ब्रहम मुहतय मे पढना अच्छा रहता है | परन्तु र्ह जरूरी नहीं की आप केवल सुबह ही इसे पढ़ सकते है इसे आप कभी भी चाहे ट्रेन, बस, मेट्रो मे सफ़र कर रहे है र्ा कफर आप दोपहर, संध्र्ा र्ा राहत्र के समर् इसे पढ़ सकते है | भगवद्गीता पढ़ना हमेशा लाभदार्क ही होता है |
श्रीमद्भगवद्गीता पढने कक कोई आर्ु नहीं है इसे ककसी भी आर्ु का व्यहक्त चाहे वह बालक हो र्ा वृद्ध पढ़ सकते है | और र्ह प्रत्र्ेक अहभभावक का कतयव्य है की र्ह ज्ञान बालको को कदर्ा जार्े तो उनका महस्तस्क का हवकास भी अच्छा होता है तथा उन्हें मनुष्र् जीवन का लक्ष्र् पता होगा तो वह अपना जीवन व्यथय व्यसनों मे नष्ट न कर केहन्ित रहेगा कक र्ह भौहतक जीवन सुखों के पीछे भागने के हलए नहीं अहपतु भगवद्भहक्त प्राप्त करने के हलए है| आज के समर् मे बच्चे थोड़ी सी असफलता से हताश और हनराश हो जाते है तथा अपने भहवष्र् को लेकर चचंहतत हो जाते है और कई बार गलत पथ पर चलने लगते है तो कम आर्ु से र्कद वह भगवद्गीता का अध्र्र्न करेगे तो कभी भ्रहमत नही होगे !

इस संदभय मे प्रह्लाद महाराज श्रीमद्भागवतम 7.6.1 मे कहते है :

श्रीप्रह्राद उवाच
कौमार आचरेत्प्राज्ञो धमायन्भागवताहनह ।
दुलयभं मानुषं जन्म तदप्र्ध्रुवमथयदम् ॥ १ ॥

प्रह्लाद महाराज ने कहा : पर्ायप्त बुहद्धमान मनुष्र् को चाहहए कक वह जीवन के प्रारम्भ से ही अथायत् बाल्र्काल से ही अन्र् सारे कार्ों को छोडक़र भहक्त कार्ों के अभ्र्ास में इस मानव शरीर का उपर्ोग करे। र्ह मनुष्र्-शरीर अत्र्न्त दुलयभ है और अन्र् शरीरों की भााँहत नाशवान् होते हुए भी अथयपूणय है, क्र्ोंकक मनुष्र् जीवन में भहक्त सम्पन्न की जा सकती है। र्कद हनष्ठापूवयक ककंहचत भी भहक्त की जार्े तो पूणय हसहद्ध प्राप्त हो सकती है।
भगवद्गीता का ज्ञान ककसी देश काल पररहस्थहत पर हनभयर नहीं है इसे ककसी भी व्यवसार् से जुड़े लोग चाहे वह कृषक, व्यापारी, सैहनक, नौकरीपेशा, गृहणी तथा ककसी भी व्यवसार् से जुड़े लोग आसानी से पढ़ सकते है | गीता का ज्ञान मनुष्र् जीवन के हलए अत्र्हधक महत्पूणय है क्र्ोंकक मनुष्र् जीवन मे ही भगवद्धाम वापस जार्ा जा सकता है तथा कृष्णभावनामृत को समझा जा सकता है ।

श्रीकृष्ण भगवद्गीता 18.70 मे कहते है :

अध्र्ेष्र्ते च र् इमं धम्र्ं संवादमावर्ो: ।
ज्ञानर्ज्ञेन तेनाहहमष्ट: स्र्ाहमहत मे महत: ॥ ७० ॥

और मैं घोहषत करता हूाँ कक जो हमारे इस पहवत्र संवाद का अध्र्र्न करता है, वह अपनी बुहद्ध से मेरी पूजा करता है। भगवद्गीता हमें बतलाती है की सांसाररक जीवन जीते हुए आध्र्ाहत्मकता कक और कैसे बढ़ना है तथा र्ह हमें जीवन को ककस प्रकार हनरंतर भगवान कक सेवा मे लगाना है र्ह हसखाती है | भगवद्गीता कालातीत है तथा इसका ज्ञान समस्त मानव जाती के हलए सभी प्रकार से उपर्ोगी है | गीता से हमें ज्ञान हमलता है कैसे हम भौहतक जीवन के कष्ट से दूर होकर स्थार्ी आनंद को प्राप्त कर सकते है |